अब उसकी बातों में आकर अचानक उसने अपना इरादा
बदल लिया।
विभिन्न तरह के बातों को सुनते सुनते वह सत्य से दूर होता चला गया।
अब उसके लिए ये कठिन है सही और ग़लत को अलग करना।
सत्य और असत्य दोनों से अनजान है।
अब उसके फैसले उसके नहीं है।
ना उसका खाना उसका है ,
ना उसका विस्तर उसके अपने अनुसार है।
उसने अपने सोचने समझने कि शक्ति किसी और के हाथ में दे रखा है।
अपने शरीर पर जो कपड़े पहनते हैं उसमें भी उसकी मर्जी नहीं है।
उसने अपने आपको उसके हाथों की कठपुतली बना रखा है।
और ये अकेले नहीं है बेबस।
उसके आगे तो सब उसका ही सुनता है। सब गुलाम हो गए है।
सबको उसने सम्मोहित कर रखा है।
वही जो बताता सब खाते हैं।
आखिर कौन हैं वो?
जिसने हम सबको सम्मोहित कर रखा है।
कौन है?
वो जादूगर है।
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हां विज्ञापन के कहे अनुसार तो हम लोग चलते है,
खाते,पीते और सोते हैं।
इसी के गुलाम है हम लोग,
इसी के हाथों के कठपुतली है।