सत्य क्या है क्या सत्य ही ईश्वर है ? अगर सत्य ही ईश्वर है तो वो कौन सा सत्य है जिसको हम ईश्वर के रूप में मानते है ?

नमस्कार दोस्तों
दोस्तों आज का जमाना जो कि पूर्णतः भ्रष्ट हो चुका है और इसको भ्रष्ट करने में हम सब की अहम भूमिका है ।इस तरह से एक बात और सामने आती है कि जो व्यक्ति जैसा है समाज में उसके आसपास वैसा ही व्यक्ति उसको मिलता है और जैसा सोचता है वह वैसा ही पाता है।
इसलिए अभी भी दुनिया में सत्य नाम की कोई चीज है ।जिस के बारे में लोग कहते है कि ये धरा सत्य पर टिकी है ।तो वो कौन सा सत्य है?
आज हम बात करेंगे सत्य के बारे और हम जानेंगे की सत्य क्या है ? सत्य के मायने क्या है ? क्या हम जिस सत्य को जानते हैं वही सत्य हमें ईश्वर के रूप में मिलता है ? वह कौन सा सत्य है ? क्या उसी सत्य को पा के परमात्मा को पाया जा सकता है?
क्या सत्य का भी कसौटी होता है ?
इन सब बातों पर ध्यान देने पर पता चलता है । सत्य की सत्यता क्या है ? सत्य को हम क्या मानते है ? सत्य मेरे लिए क्या है ।
और अब इस सब से आगे सत्य की परिकल्पना का आधार क्या है?
सत्य हम किसे मानते है ? क्या हम इसको सत्य मानते है किसी ने किसी के साथ ईमानदारी दिखाई ये पूरी जिंदगी में कोई असत्य कर्म नहीं किया ।या पूरी जिन्दगी जो वैष्णव रहा और किसी तरह के मांस आदि का सेवन नहीं किया। हम इसको ही सत्य मानते हैं ?अगर हां है तो इस तरह का
सत्य हर युग में बदलता है ।
सत्य हर परिस्थिति में बदलता है।
सत्य को हर आदमी अपने हिसाब से देखता है।
किसी ने कोई कर्म किया तो उसके लिए वो सत्य है और वही दूसरों के लिए गलत है ।
मानव सभ्यता के आरंभ में मनुष्य का खान पान कुछ और था तब वो शिकार करते थे और वही खाते थे ।जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ मानवों ने अन्न उपजाना शुरू किया और अन्न को खाने लगे ।समय के साथ खान पान बदला ।
रहन- सहन पहले लोग बिना कपड़ों के रहते थे जैसे जैसे मानव का सोच विकसित होता गया और सब कपड़ा पहनने लगे ।
उपर के दो बातों से ये बात निकल के सामने आती है कि जो बात एक समय सत्य थी वहीं बात दूसरे समय असत्य हो गई।
किसी आदमी या किसी जीव की हत्या करना असत्य है ।अगर वही अपनी रक्षा के लिए या अपने समाज अपने देश के लिए हम हत्या करते है तो वह सत्य है और हम इसको सत्य से तुलना करते है और वो अच्छी बात है ।तो सत्य का क्या हुआ ।किसी को दण्ड देना असत्य है ।मगर किसी को सुधारने के लिए दण्ड देना सत्य है। इसलिए उपर के सत्य को हम कसौटी पर परख सकते है और हर युग में ये सत्य बदलेगा और सत्य को उसी युग के हिसाब से परखा जाएगा ।तो हम सत्य किसे माने एक वो सत्य जो वक्त के साथ बदलता है या एक वो सत्य जो वक्त और समाज से परे है उसे ।
आदि समय से हमारे समाज के संत ,ऋषि मुनियों ने जिस सत्य को पाया वो क्या था ?
महात्मा बुद्ध ने जिसको पाया वो क्या था? वो कौन सा सत्य है जो सबसे छुपा है, और उसको पाने के लिए महात्मा बुद्ध को इतनी तपस्या करनी पड़ी ।इसी तरह कईयों ने पाया है। संत कबीर ने जिस सत्य के बारे में बताया वो क्या है ? विभिन्न तरह संप्रदाय ने सत्य को अपने हिसाब से परिभाषित किया है ।मगर आपने कौन से सत्य को देखा है माना है तो क्या इस सत्य को हम ईश्वर मान सकते है जो कि हर युग के साथ बदलता है तो क्या सत्य की ये परिभाषा उचित प्रतीत होती है?
तो सत्य की परिभाषा क्या है ?
जहां तक मैंने जाना है ईश्वर सत्य असत्य से ऊपर है । सत्य -असत्य इंसान ने अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए बनाया है ।शुरू से ही मानव समूह में रहता आया है और इसी समूह से उसने समाज का निर्माण किया ।समाज को अनुशासित रखने के लिए और उसके उचित विकास के लिए उसने बहुत से नियमो को बनाया ।कुछ नियम वक्त के साथ अपने आप बनते गए ।जिसमें कुछ नियम बाध्यकारी थे जिसका पालन करना जरूरी था और कुछ नियम अबाध्यकारी थे।
ये सारे नियम कानून वह अपने समाज को सुरक्षित रखने के लिए और समाज को अनुशासित रखने के लिए ,उसके समाज के द्वारा बनाए गए नियम मात्र है। इसके अलावा बहुत सारे नियम जो वक्त के साथ बनते बिगड़ते गए जो हमारे अंदर घर कर गए ।वक्त के साथ साथ वही नियम हमारे लिए सत्य और असत्य के पर्याय बन गए और हम असली सत्य को भूलते गए । जिसको हम सत्य मानते है । ये सारे सत्य से ईश्वर की तुलना करना उचित नहीं लगता है।तो उचित सत्य क्या है ? क्या आप ने सत्य का अनुभव किया है ?क्या आप हमसे शेयर करेंगे? की सत्य क्या है सत्य के बारे में आपका अनुभव कैसा रहा है अभी तक और आपने अभी तक किसको सत्य माना है?
आपके अनुसार क्या सत्य ही ईश्वर है तो वह कौन सा सत्य है?सत्य की परिभाषा क्या है?
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